۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
علی ہاشم عابدی

हौज़ा / रसूलुल्लाह स०अ० की हदीस "यक़ीनन क़त्ले हुसैन (अ.स.) से मोमिनों के दिलों में ऐसी गर्मी पैदा हो गई है जो  कभी ठंडी नहीं होगी।" को बयान करते हुए कहा: दुनिया के हर दुःख का असर समय के साथ कम हो जाता है सिवाय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दुःख के, जो आज ही नहीं बल्कि क़यामत के दिन तक ताज़ा रहेगा और मोमिन जब भी उसे याद करेगा तो रोएगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, लखनऊ, पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी अशरा ए मजालिस बारगाह उम्म अल-बनीन सलामुल्लाह अलैहा मंसूर नगर में सुबह 7:30 बजे आयोजित किया जा रहा है, जिसे मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी खेताब कर रहे हैं।

मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने अशरा ‌ए मजालिस की पहली मजलिस में रसूलुल्लाह स०अ० की हदीस "यक़ीनन क़त्ले हुसैन (अ.स.) से मोमिनों के दिलों में ऐसी गर्मी पैदा हो गई है जो  कभी ठंडी नहीं होगी।" को बयान करते हुए कहा: दुनिया के हर दुःख का असर समय के साथ कम हो जाता है सिवाय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दुःख के, जो आज ही नहीं बल्कि क़यामत के दिन तक ताज़ा रहेगा और मोमिन जब भी उसे याद करेगा तो रोएगा।

 मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने कहा: मजलिसे हुसैन अ०स० में अहलेबैत अ०स० आते हैं, मलाएका और फरिश्ते आते हैं, हज़रत फातिमा ज़हरा स०अ० आती हैं, वह बीबी आती हैं कि रवायतों में है कि जब वह रसूलुल्लाह स०अ० के पास आती थीं तो रसूलुल्लाह स०अ० उनके एहतेराम में खड़े होते और आगे बढ़ कर इस्तेक़्बाल करते थे, नबियों और रसूलों के सरदार के एहतेराम का मतलब हर नबी और रसूल हज़रत फातिमा ज़हरा स०अ० का एहतेराम करता था! इसलिए जो लोग मजलिस में आते हैं उन्हें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि वह लोग हज़रत फातिमा ज़हरा स०अ० की बज़्म में हाज़िरी दे रहे हैं, अगर यह बात ध्यान रहे गी तो ज़ाकिर वही पढ़े गा जो हज़रत फातिमा ज़हरा स०अ० को पसंद है और सुनने वाला वही सुने गा जो हज़रत फातिमा ज़हरा स०अ० को पसंद है, अगर इस बात सब लोग सहमत हो गये तो फिर न कोई बेचैनी रहेगी और न ही एख़्तेलाफ की कोई गुंजाइश रहेगी।

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